पाचन और एन्जाइम क्रियाविधि जैसे परिवर्तनीय प्रक्रियाओ को नियंत्रित करता है ।
पित दोष की प्रमुखता वाले व्यक्ति के चरित्र में आग तत्व नैसर्गिक रूप से विघमान रहता है ऐसे व्यक्ति मध्यम आकर के होते है और उनकी मांसपेशिया वात वाले व्यक्तियों की तुलना में अधिक विकसित होती है । उनकी त्वचा मुलायम और गर्म होती है और उनके शरीर में गर्मी बहुत होती है और उनके शरीर से पसीना बहुत बहता है । उनके बाल पतले लाल या भूरे होते है और समय से पहले पक जाते है तथा उनमे गंजापन आ सकता है और उनके बाल झड़ना शुरू हो जाते है ।
उनकी इच्छा(यौनेच्छा ) बहुत तीर्व होती है । उन्हें नींद भी अच्छी आती है और जल्दी टूट जाने वाली नहीं होती ।
उनकी नाड़ी मजबूत और स्थिर होती है । पित दोष से युक्त व्यक्ति जोर से भावनापूर्ण अंदाज में बोलता है और अक्सर वह बातचीत में हावी रहता है उन्हें गर्म मौसम बर्दाश्त नहीं होता और उनकी आँखे संवेदनशील होती है ।
उनका स्वभाव बहिर्मुखी होता है और वे लोगो का ध्यान अपनी और आकर्षित करना चाहते है वे अपनी भावनाओ पर काबू पा लेते है लेकिन तनाव की अवस्था में वे चिड़चिड़े, नाराज और गलती कर बैठते है ।
पित्त बढ़ने के कारण
पित्त वर्धक पदार्थो का सेवन जैसे - खट्ठे,अम्लीय ,मसालेदार,नमकीन और अग्नि तत्व की अधिकता वाले जैसे मिर्च, अधिकतर मसाले ,गाजर, प्याज,लहसुन ,शहतूत, बेर, चेरी, नाशपाती, पपीता, अनानास, स्ट्रॉबेरी अधिकतर बादाम,चटनी,आचार,सरसो और सिरकायुक्त पदार्थ ।
क्रोध में भोजन करना या बार-बार गुस्सा आना चाय कॉफी,अल्कोहल और सिगरेट का अत्यधिक सेवन करने के कारण पित्त बढ़ता है
ऐसी गतिविधियों में व्यस्त रहना जिनका स्वरूप पित्त वाला होता है जैसे - खेल -कूद
वाद - विवाद
पित्त बढ़ाने वाले प्राकृतिक कारको में ताप और धूप, दोपहर,या मध्यरात्रि और वयस्क अवस्था शामिल है ।
पित्त विकार के लक्षण
पित्त असंतुलन से निम्न प्रकार की बीमारी हो सकती है :
शरीर में जलन, ह्रदय में जलन, यकृत में गड़बड़ी, बाल झड़ने, गंजापन, मूत्र, नलिका में संक्रमण पित्ताशय में गड़बड़ी या वृक्क में पथरी, मुख में अल्सर, अधिक पसीने का स्त्राव, अधिक प्यास लगना, बुखार पित्त से संबंधित विकार व्याधियां है