आयुर्वेद के अनुसार कफ बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ पहले खाने चाहिए। इनमे भारी तेल युक्त या मीठे
खाध पदार्थ शामिल है।मीठे भोजन (मधुर रस) में आनाज, दाले और रोटिया शामिल है। ये खाघ
सामग्री ठोस या अध्द्र - ठोस रूप में होती है, इनसे पेट के तीसरे भाग को भरा जाना चाहिए । उसके बाद पित्त बढ़ाने वाले खाघ सामग्रियां खानी चाहिए और पेट के तीसरे भाग को भरा जाना चाहिए । इस समूह मे नमकीन, खट्रटे और अम्लीय तथा द्रव युक्त सामग्रियां शामिल है। पेट का अंतिम तीसरा भाग वायु के लिए आरक्षित है। भोजन के अंत में मिठाई खानी चाहिए ताकि इन्द्रियों को सन्तुस्टी मिल सके।
समय
भोजन ताजा होना चाहिए और गर्म - गर्म परोसना चाहिए । कम से कम चार - पांच घंटे के अंतराल पर खाने से भोजन पूरी तरह पच जाता है। भोजन के दो अन्तराल के बीच कुछ नहीं खाना चाहिए मगर भूख लगने पर फलों का रस लिया जा सकता है। भोजन को पर्याप्त रूप से चबाना चाहिए ताकि भोजन लार (और इसके पाचक रसो )के साथ पूरी तरह मिल सके। इससे जठराग्नि को मदद मिलती है। कफ बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थ को विषेश रूप से चबाना चाहिए। इनकी प्रकृति भारी होती हैं और उसे पचाना अधिक कठिन होता है।